वफ़ा की राह में हर मरहला आसाँ नहीं होता किसी को भूल जाना दर्द का दरमाँ नहीं होता पज़ीराई कहाँ होती है अब शाइस्ता जज़्बों की हर ऐसा हादसा मिन्नत-कश-ए-एहसाँ नहीं होता ठिकाना एक ही रहता है कब आज़ाद बंदों का कभी भी सरफ़रोशों का मकाँ ज़िंदाँ नहीं होता छुपा है इस तरह वो अपने ही जलवों के पर्दे में रुख़-ए-पुर-नूर उर्यां हो के भी उर्यां नहीं होता वो अपना घर बसा लेगा ज़रा मोहलत उसे देना कोई भी बे-सहारा मुस्तक़िल मेहमाँ नहीं होता ये माना हादसा है ज़िंदगी से प्यार करना भी तुम्हारी तरह से क्यों दिल मिरा शादाँ नहीं होता सलीक़ा आप ने सिखलाया उस को जीने मरने का 'मुनीर' अपनी तबीअत पर कभी नाज़ाँ नहीं होता