क्या दिखा सकता है कोई मो'जिज़े अस्सी करोड़ क्या कभी हल हो सकेंगे मसअले अस्सी करोड़ सोचिए क्यूँकर कटेगा वक़्त का लम्बा सफ़र रहनुमा कोई नहीं और क़ाफ़िले अस्सी करोड़ कोई भी आँसू तुम्हारे पोंछने वाला नहीं कहने को माँ हैं तुम्हारे लाडले अस्सी करोड़ उस के होंटों पर जगाना है मसर्रत की लकीर जिस के सीने में निहाँ हैं आबले अस्सी करोड़ एक के बा'द एक रस्ते में गुज़रने के लिए मुंतज़िर बैठे हुए हैं हादसे अस्सी करोड़ मुख़्तलिफ़ अंदाज़ के हैं मुख़्तलिफ़ लहजों में हैं इक किताब-ए-ज़िंदगी के तर्जुमे अस्सी करोड़ देखिए कब ख़त्म हो घुट घुट के जीने की सज़ा एक रस्सी भूक की है और गले अस्सी करोड़ ख़ुद ही 'काज़िम' रख दिए हम ने जिला के वास्ते चंद फ़न-कारों के आगे आइने अस्सी करोड़