खा गए ना यहीं ये मात मियाँ है किसी को कहाँ सबात मियाँ वक़्त यकसाँ कभी नहीं रहता दिन से कहती थी कल ये रात मियाँ अपना बाज़ू न वो गँवा बैठे जो लगाए हुए है घात मियाँ आस्तीं उन की देख लीजिएगा वो जो रहते हैं अपने साथ मियाँ सर-ब-ज़ानू कहीं ये रोती है हँस रही है कहीं हयात मियाँ हम पे है वाजिब-उल-अदा 'ज़ाहिद' आँसुओं की भी कुछ ज़कात मियाँ