ख़ाक हो कर भी आसमाँ ढूँडा तुझ को हम ने कहाँ कहाँ ढूँडा हम ने रातों को जाग कर अक्सर टूटे ख़्वाबों का हर निशाँ ढूँडा ज़ात का अपनी कुछ सिरा न मिला ख़ुद को हम ने है कल जहाँ ढूँडा इश्क़ हासिल कभी हुआ ही नहीं उम्र भर तुझ को जान-ए-जाँ ढूँडा तुम को राहत मिलेगी कैसे 'हिना' तुम ने घर छोड़ कर मकाँ ढूँडा