राहतों का मिरी पता है अली By Ghazal << सच की ख़ातिर बता तू लड़ा ... ख़ाक हो कर भी आसमाँ ढूँडा >> राहतों का मिरी पता है अली मुश्किलों का मिरी कुशा है अली साथ मेरा सभी ने छोड़ दिया कौन मेरा तिरे सिवा है अली चाँद तारे भी उस का नाम जपे ज़र्रे ज़र्रे में यूँ बसा है अली इल्म का रास्ता जो पूछा गया तिरी जानिब चली 'हिना' है अली Share on: