ख़ाक तक मेरे आशियाने की ले उड़ी है हवा ज़माने की अपनी तक़दीर आज़माने की आरज़ू है किसी को पाने की क्या करोगे हमारा दिल ले कर तुम को आदत है भूल जाने की सच कहो किस से प्यार है तुम को हम से क्या बात है छुपाने की हम यूँही चाहते रहेंगे तुम्हें हम को परवा नहीं ज़माने की बर्क़-ओ-बाराँ से पूछ ऐ बुलबुल दास्ताँ मेरे आशियाने की कोई तदबीर ऐ दिल-ए-नादाँ बात बिगड़ी हुई बनाने की साक़िया तेरी मय-फ़िशाँ नज़रें आबरू हैं शराब ख़ाने की हम को पामाल कर गई 'नय्यर' हर अदा संग-दिल ज़माने की