ख़मोशियों में बहुत से सवाल लाया है शिकायतों के लिए रुख़ निकाल लाया है ये कह के उस ने मुझे हैरतों में डाल दिया वो मेरे बीते हुए माह-ओ-साल लाया है ज़रा सी देर में सदियों का बन गया ज़ामिन ये किस मिज़ाज का हर्फ़-ए-कमाल लाया है अब उस के आगे तुम्हें हैरतें बताऊँ भी क्या ख़ुशी का लम्हा भी रंज-ओ-मलाल लाया है मुझे पता न चला ये कि मेरा मोहसिन भी वरक़ पे सोने के लिख कर ज़वाल लाया है बिसात-ए-इश्क़ में 'असलम' ये कैसे मात हुई कहाँ कहाँ से वो मोहरे निकाल लाया है