ख़ार-ओ-गुल पर निखार आ जाए यूँ चमन में बहार आ जाए मुस्कुरा इस तरह ऐ जान-ए-वफ़ा ज़िंदगी में बहार आ जाए तुम न आओ तो कोई ख़त ही सही कुछ तो दिल को क़रार आ जाए हँस के देखो न बार-बार मुझे मुझ को ख़ुद पर न प्यार आ जाए गुफ़्तुगू हो ब-तर्ज़-ए-शाइस्ता जो सुने ए'तिबार आ जाए मौसम-ए-गुल है बज़्म में 'अंजुम' काश वो मुश्क-बार आ जाए