होश-ओ-ख़िरद से आप ही बेगाना हो गया उट्ठी निगाह-ए-नाज़ मैं दीवाना हो गया दुनिया में रह के किस का करे कोई ए'तिबार जब अपना दिल ही आप से बेगाना हो गया उन की नज़र का फ़ैज़ है बस और कुछ नहीं फ़र्ज़ानगी में कोई जो दीवाना हो गया सर उन के आस्ताने पे झुकता नहीं है अब अंदाज़-ए-बंदगी भी गदायाना हो गया उन की नवाज़िशों का उजाला कहो उसे जो अंजुमन में जल्वा-ए-जानाना हो गया साक़ी की चश्म-ए-नाज़ का अल्लह रे एहतिराम नज़रों में सारा मै-कदा पैमाना हो गया 'अंजुम' नहीं था कुछ भी सिवा दिल के मेरे पास अब देखिए उसे भी तो दीवाना हो गया