ख़बर नहीं कई दिन से वो दिक़ है या ख़ुश है ख़ुशी तभी हो कि जब सुन लूँ दिल-रुबा ख़ुश है ज़रा भी बिगड़े तो बिगड़े ज़माना सब मुझ से ख़ुशी है वो तो हर इक दोस्त आश्ना ख़ुश है पड़ा हूँ जब से कि बीमार हो के मैं घर में हर एक ग़ैर अदावत से फिरता क्या ख़ुश है मगर है उस की इनायत तो ग़म नहीं कुछ भी वो मुझ से ख़ुश रहे बस फिर तो दिल मिरा ख़ुश है मैं एक ग़म नहीं सौ जान पर उठा लूँगा मिरे सताने से कह दे कि दिल तिरा ख़ुश है सबब तो कुछ नहीं मालूम हाए क्या मैं करूँ वो आप ही आप कई दिन से मुझ से ना-ख़ुश है वो बात कौन सी है जो नहीं समझते हम फ़रेब दे के हमें क्यूँ तू बेवफ़ा ख़ुश है 'निज़ाम' कौन सा दिन हो जो वाँ पे जाऊँ मैं कहें वो हँस के मिज़ाज अब तो आप का ख़ुश है