ख़बर नहीं कि कोई किस के इंतिख़ाब में है मगर जो शख़्स कल उभरेगा मेरे ख़्वाब में है जहान वालों के लाखों इधर उधर के जवाब हयात का तो सवाल आदमी के बाब में है हमें न घेरती शायद ये चार-दीवारी मगर ये ख़ाक जो इस आलम-ए-ख़राब में है ख़ुद अपने पर जो गए हैं वो तिफ़्ल कौन से हैं वो नस्ल कैसी है जिस का जहाँ अज़ाब में है नए जहान के मे'मार पहले गुज़़रेंगे फिर उस के बाद वो दुनिया जो सिर्फ़ ख़्वाब में है अजब से नक़्श मैं दीवार-ओ-दर पे देखता हूँ बस आने वाले हैं जिन का सुख़न किताब में है