यूँ ब-ज़ाहिर देखने में गो कि बे चेहरा हूँ मैं मुझ में अपने ख़ाल-ओ-ख़त देखो कि आईना हूँ मैं जज़्बा-ए-सहरा-नवरदी थक के कब रुकता हूँ मैं पाँव से काँटा निकलने दे अभी चलता हूँ मैं हाल ज़हर-आलूद माज़ी फ़ौत मुस्तक़बिल सियाह आज के इंसान की तक़दीर पढ़ सकता हूँ मैं मय-कशी तो क्या बुझा पाएगी मेरी तिश्नगी दीजिए मुझ को समुंदर प्यास का सहरा हूँ मैं वो ख़यालों में बरहना जिस्म क्या आए 'नरेश' रात भर अपने बदन की आँच से सुलगा हूँ मैं