ख़द्द-ओ-ख़ाल से ख़ाली है ये तस्वीर तो जाली है कहते हैं मर्ग-ए-मुफ़ाजात हुक्म-ए-जनाब-ए-आली है लश्कर-ए-इस्हाल-ज़दा की मैं ने कमान सँभाली है दुनिया की आवाज़ सुनो एक ही हाथ की ताली है हर इक इंसान के अंदर बैठा एक मवाली है अमला मोअ'त्तल है दिल का जारी सई-ए-बहाली है क़ीमत अलग है ख़सलत एक ये गंदुम वो शाली है शेर की जस्त को काफ़ी बस मस्त हिरन की जुगाली है मत फटको मुझ दिल के पास ये दरवेश जलाली है 'शफ़क़'! अब अपने बारे में क्या अफ़्वाह उड़ा ली है