ताब-ए-नज़र से उन को परेशाँ किए हुए आईना-ए-जमाल को हैराँ किए हुए जलते रहे चराग़ की सूरत तमाम उम्र लेकिन फ़ज़ा-ए-ग़म को फ़रोज़ाँ किए हुए तेरी गली में जश्न-ए-बहाराँ है बे-ख़बर आए हैं लोग दिल को गुलिस्ताँ किए हुए साक़ी बस एक जाम-ए-सुकूँ चाहिए मुझे हालात-ए-ज़िंदगी हैं परेशाँ किए हुए हम भी शरीक-ए-जश्न-ए-बहाराँ हुए तो हैं तार-ए-नज़र को सर्फ़-ए-गरेबाँ किए हुए गुज़रा हूँ ज़िंदगी की हर इक कशमकश से मैं दिल को हरीफ़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ किए हुए पास-ए-वफ़ा ने ख़ुद ही गरेबाँ को सी दिया हम भी चले थे चाक-ए-गरेबाँ किए हुए दैर ओ हरम के लोग हमें आ के देख लें हम हैं तवाफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ किए हुए बैठे हैं अजनबी की तरह हम भी ऐ 'मुशीर' ख़ुद को शरीक-ए-बज़्म-ए-हरीफ़ाँ किए हुए