ख़दशा था जिस के होने का आख़िर है हो गया बंदा ख़ुदा की खोज में काफ़िर है हो गया ख़िल्क़त में अपनी छुप के है ख़िल्क़त ही से छुपा क़ुदरत के पर्दे में निहाँ क़ादिर है हो गया जल्वा बयाँ हो उस का तो किस की ज़बाँ से हो बेहोश हैं वो जिन पे वो ज़ाहिर है हो गया मंदिर में बरहमन ने है खोली हुई दुकान मस्जिद का पेश-इमाम भी ताजिर है हो गया सब जाएदाद बाँट के बेटों के दरमियाँ अपने ही घर में बाप मुहाजिर है हो गया सूद-ओ-ज़ियाँ की फ़िक्र है करने लगा 'सदा' शायद फ़ज़ा से वे भी मुतअस्सिर है हो गया