ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला तो सेहन-ए-चमन में न गुल हो न लाला लिया तेरे आशिक़ ने बरसों सँभाला बहुत कर गया मरने वाला कसाला पए-फ़ातेहा हाथ उठावेगा कोई सर-ए-तुर्बत-ए-बेकसाँ आने वाला इसी गिर्या के तार से मेरी आँखें बना देंगी नद्दी बहा देंगी नाला बिठा कर तुम्हें शम्अ' के पास देखा तुम आँखों की पुतली वो घर का उजाला ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोले ये है कौन दीवाना ख़त लिखने वाला दिया हुक्म साक़ी को पीर-ए-मुग़ाँ ने पय-ए-मुहतसिब जाम-ओ-मीना उठा ला ये सुनते ही मय-ख़्वार बोले ख़ुशी से हमीं सा है ये नेक अल्लाह वाला हक़ीक़त में 'साइल' ने ज़ौक़-ए-अदब से जहाँ तक उछाला गया नाम उछाला