ख़िज़ाँ के दोष पे रखता है वो बहार का रंग अजब है उस की निगाहों में इंतिज़ार का रंग अजब है रस्म-ए-वफ़ा और ए'तिबार का रंग कि दिल में बन के धड़कता है उस के प्यार का रंग सुकून-ए-दिल का ठिकाना कहीं न मिल पाया बसा हुआ है निगाहों में जो दयार का रंग लबों पे झूटा तबस्सुम नमी सी आँखों में अयाँ है चेहरे से उस के फ़िराक़-ए-यार का रंग अमीर-ए-शहर को हम बे-कसों से क्या मतलब उसे तो चाहिए बस अपने इक़्तिदार का रंग हमारी क़ौम को पढ़ने दो क़िस्से माज़ी के ख़बर तो होने दो क्या था सलीब-ओ-दार का रंग नहीं था शौक़ मुझे हिजरतों का कोई 'ज़फ़र' दयार-ए-ग़ैर में ले आया रोज़गार का रंग