लहू ने भिगोए मुहाजिर परिंदे क़तारों में रोए मुहाजिर परिंदे ज़मीं हो गई तंग तेरी ख़ुदाया हवाओं में सोए मुहाजिर परिंदे शिकारी परिंदों को काटे है ऐसे कि हों जैसे बोए मुहाजिर परिंदे ख़ुदाया ख़बर ख़ैर की आए जल्दी अभी तक हैं खोए मुहाजिर परिंदे बहुत याद करते हैं अहल-ए-चमन को वतन से पिरोए मुहाजिर परिंदे जो ग़ुर्बत की गोली से मारे गए थे वो लालच ने ढोए मुहाजिर परिंदे जो थे बिन परों के 'ज़फ़र' उड़ न पाए समुंदर डुबोए मुहाजिर परिंदे