ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है ग़ज़ब होता है जब ख़ुद बाग़बाँ सय्याद होता है तुझे इस पर गुमान-ए-नग़्मा-ए-सय्याद होता है क़फ़स में नाला-कश मुर्ग़-ए-गुलिस्ताँ-ज़ाद होता है ख़ुशी के बा'द इक तू ही नहीं है मुब्तला-ए-ग़म यूँही अक्सर जहाँ में ऐ दिल-ए-नाशाद, होता है रवा रखता है वो बेदाद पहले अपनी फ़ितरत पर जो इंसाँ दूसरे पर माइल-ए-बेदाद होता है जो करता है निसार-ए-नौ-ए-इंसाँ अपनी हस्ती को वो इंसाँ इफ़्तिख़ार-ए-आलम-ए-ईजाद होता है मिरे अशआर की तौसीफ़ होती है मिरे होते नहीं मा'लूम मेरे बा'द क्या इरशाद होता है न कर 'महरूम' तू फ़िक्र-ए-सुख़न अब फ़िक्र-ए-उक़्बा कर नवा-परवाज़ बज़्म-ए-शेर में आज़ाद होता है