ख़िज़्र-ए-मंज़िल न था इब्न-ए-मरियम न था ग़म जहाँ था कोई शामिल-ए-ग़म न था दिल को अपनी तबाही का कुछ ग़म न था उस की आँखों का इरशाद मुबहम न था इस से पहले भी सौ बार धड़का था दिल दिल धड़कने का लेकिन ये आलम न था कब फ़लक पर सितारे फ़रोज़ाँ न थे कब ज़मीं पर सितारों का मातम न था जाम-ए-जम में जो सदियों सुलगता रहा और क्या था अगर ख़ून-ए-आदम न था उस ने पूछा न था 'शोर' जब तक मिज़ाज आँख नम नम न थी दर्द कम कम न था