ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़ अब नज़र जाने लगी बाहर से अंदर की तरफ़ कश्ती-ए-उम्मीद के हर बादबाँ उड़ने लगे किस ने रुख़ मोड़ा हवाओं का समुंदर की तरफ़ यूँ भी होता है मदारात-ए-जुनूँ के शौक़ में फूल जैसे हाथ उठ जाते हैं पत्थर की तरफ़ हम ने समझे थे कि ये होगा मआल-ए-कार-ए-इश्क़ रुख़ किया बाद-ए-बहारी ने मिरे घर की तरफ़ दी है 'नय्यर' मुझ को साक़ी ने ये कैसी ख़ास मय सब की नज़रें उठ रही हैं मेरे साग़र की तरफ़