ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है वस्ल की शब न सही हिज्र का हंगाम तो है नूर-ए-अफ़्लाक से रौशन हो शब-ए-ग़म कि न हो चाँद तारों से मिरा नामा ओ पैग़ाम तो है कम नहीं ऐ दिल-ए-बेताब मता-ए-उम्मीद दस्त-ए-मय-ख़्वार में ख़ाली ही सही जाम तो है बाम-ए-ख़ुर्शीद से उतरे कि न उतरे कोई सुब्ह ख़ेमा-ए-शब में बहुत देर से कोहराम तो है जो भी इल्ज़ाम मिरे इश्क़ पे आया हो 'नईम' उन से वाबस्ता किसी तौर मिरा नाम तो है