ख़ैर उम्मत हैं मोहब्बत हैं वफ़ा प्यार हैं हम अम्न-ए-आलम के ज़माने में अलम-दार हैं हम क्यूँ हमें लोग समझते हैं कि ग़द्दार हैं हम रोज़-ए-अव्वल से वतन तेरे वफ़ादार हैं हम जंग-ए-आज़ादी में हम ने भी किया ख़ुद को निसार जान देने के लिए आज भी तय्यार हैं हम बुग़्ज़-ओ-कीने से कुदूरत से है नफ़रत हम को आश्ती-अम्न-ओ-मोहब्बत के परस्तार हैं हम कोई ग़म-ख़्वार न मोनिस है ज़माने भर में एक मुद्दत से मुसीबत में गिरफ़्तार हैं हम रब्ब-ए-आलम है फ़क़त एक सहारा तेरा वर्ना दुनिया में तो बेयार-ओ-मददगार हैं हम कोई बढ़ कर हमें सीने से लगा ले ऐ 'ज़की' तंग-नज़री से अदावत से तो बेज़ार हैं हम