अरक़ को देख मुँह पर तेरे प्यारे फ़लक को पीठ दे बैठे हैं तारे कभी वो दिन भी होवेगा कि जिस दिन गले से फिर मिलेंगे हम तुम्हारे चमन में किस ने दिल ख़ाली किया है लहू से जो भरे हैं फूल सारे नहीं होती मयस्सर वस्ल की रात चले जाते हैं यूँ ही दिन हमारे रक़ीबों को मिलें गुल और हमें दाग़ 'हसन' क्या बख़्त उल्टे हैं हमारे