ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ दिल-ए-ज़ाहिद कबाब करता हूँ नाला-ए-आतिशीं से यक दम मैं दिल-ए-फ़ौलाद आब करता हूँ आह-ए-सोज़ाँ ओ अश्क-ए-गुल-गूँ से कार-ए-बर्क़-ओ-सहाब करता हूँ दाग़-ए-सोज़ान-ए-इश्क़ से दिल को चश्मा-ए-आफ़्ताब करता हूँ बर्क़ को भी सकूँ हुआ आख़िर मैं हनूज़ इज़्तिराब करता हूँ ताकि 'बेदार' उस से हो आबाद ख़ाना-ए-दिल ख़राब करता हूँ