ख़िरद की राह में हर मोड़ पर धोके निकल आए बिसात-ए-अम्न पर भी जंग के नक़्शे निकल आए ज़रूरी है हम अपनी ज़िंदगी को आइना रक्खें ये चादर कौन ओढ़ेगा अगर धब्बे निकल आए मोहब्बत का उसे इक़रार करना ही पड़ा लेकिन ये सूखे पेड़ से कैसे हरे पत्ते निकल आए बहुत दिन बा'द जब मैं ने ख़ुदी का आइना देखा तो ख़ुद मेरे ही चेहरे से कई चेहरे निकल आए कभी हारे सिपाही की तरह वापस नहीं पलटे हम आँसू की तरह इक बार जो घर से निकल आए हथेली पर उगाना चाहते हैं खेत सरसों के मिरे बच्चे तो अपनी उम्र से आगे निकल आए जुलूस-ए-अम्न जब निकला तो हम ने 'शौक़' ये देखा कहीं ख़ंजर निकल आए कहीं नेज़े निकल आए