ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ दिलों के बाग़ ज़ख़्मों के गुलिस्तानों में आ जाओ ये दामान ओ गरेबाँ अब सलामत रह नहीं सकते अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है दीवानों में आ जाओ सितम की तेग़ ख़ुद दस्त-ए-सितम को काट देती है सितम-रानो तुम अब अपने अज़ा-ख़ानों में आ जाओ ये कब तक सर्द लाशें बे-हिसी के बर्फ़-ख़ानों में चिराग़-ए-दर्द से रौशन शबिस्तानों में आ जाओ ये कब तक सीम-ओ-ज़र के जंगलों में मश्क़-ए-ख़ूँ-ख़्वारी ये इंसानों की बस्ती है अब इंसानों में आ जाओ कभी शबनम का क़तरा बन के चमको लाला-ओ-गुल पर कभी दरियाओं की सूरत बयाबानों में आ जाओ हवा है सख़्त अब अश्कों के परचम उड़ नहीं सकते लहू के सुर्ख़ परचम ले के मैदानों में आ जाओ जराहत-ख़ाना-ए-दिल है तलाश-ए-रंग-ओ-निकहत में कहाँ हो ऐ गुलिस्तानो गरेबानों में आ जाओ ज़माना कर रहा है एहतिमाम-ए-जश्न-ए-बेदारी गरेबाँ चाक कर के शोला-दामानों में आ जाओ