ख़ाकसारी से जो ग़ाफ़िल दिल-ए-ग़म्माज़ हुआ ख़ाक के पर्दे में पोशीदा मिरा राज़ हुआ ले गया ख़त जो कबूतर की तरह ताइर-ए-दिल ज़ुल्फ़ के जाल में फँसते ही गिरह-बाज़ हुआ साज़ के पर्दे में की तू ने हुकूमत सब पर नए क़ानून से तय्यार तिरा साज़ हुआ हैरती फ़स्ल-ए-चमन में हुई सरसब्ज़ ऐसी सब्ज़ा रूख़्सारा-ए-तस्वीर से आग़ाज़ हुआ रात शरमा के तिरे बालों से रू-पोश हुई ज़ाग़-ए-शब के लिए गेसू पर-ए-पर्वाज़ हुआ कोठे पर चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम यार से रजअत-ए-ख़ुर्शीद का एजाज़ हुआ चमन-ए-दहर में थे दीदा-ए-उन्क़ा नर्गिस जब से मैं शेफ़्ता-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ हुआ सिफ़त-ए-आबला मीना-ए-फ़लक टूट गया क्या क़यामत तिरी रफ़्तार का अंदाज़ हुआ जब हुआ महव-ए-अदा बाग़ में वो ख़ुसरव-ए-हुस्न फूलों के अक्स से गुलगूँ फ़रस-ए-नाज़ हुआ आप मुँह देखने को आईना-ए-दिल माँगा तसफ़िया उस बुत-ए-काफ़िर से ख़ुदा साज़ हुआ अरसा-ए-दहर में बाँधा जो तिलिस्म-ए-उल्फ़त दुश्मन-ए-जाँ फ़लक-ए-शोबदा-पर्दाज़ हुआ जान लेता है तिरी तीर-ए-निगह से सब की ऐ परी पैक-ए-क़ज़ा भी क़दर-अंदाज़ हुआ सुम्बुल-ए-आह हुआ तुर्रा-ए-शमशाद-ए-बहिश्त हम-बग़ल मुझ से जो वो सर्व सर-अफ़राज़ हुआ उस से कुछ कह के मुझे ज़ब्ह किया बातों में तेज़-तर तेग़-ए-अजल से लब-ए-ग़म्माज़ हुआ लोग करते हैं कमाल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा का वस्फ़ ख़ल्क़ को याद तिरा मुसहफ़-ए-एजाज़ हुआ ऐ मुग़न्नी दिल-ए-नादाँ निकल आया बाहर आज बे-पर्दा ज़माना में तिरा साज़ हुआ रोज़-ए-फ़ुर्क़त ने किया ताइर-ए-दिल को हैजान गुल-ए-ख़ुर्शीद मुझे जंगल-ए-शहबाज़ हुआ बोसा माँगा न गया होंटों का ऐ रश्क-ए-परी रंग मिस्सी का मुझे सुर्मा-ए-आवाज़ हुआ नश्शा-ए-ग़म्ज़ा-ओ-अंदाज़ से सरशार हूँ मैं कासा-ए-उम्र-ए-रवाँ जाम-ए-मय-ए-नाज़ हुआ तर-दिमाग़ी जो बढ़े नश्शा-ए-मअनी की 'मुनीर' कासा-ए-सर मुझे जाम-ए-मय-ए-शीराज़ हुआ