ख़ला में दौड़ लगाऊँ किसी के बाप का क्या कहीं भी आऊँ या जाऊँ किसी के बाप का क्या बनाऊँ पाँव की जूती मैं अपनी बीवी को कि अपने सर पे बिठाऊँ किसी के बाप का क्या पढ़ें धड़ल्ले से शागिर्द भी मेरी ग़ज़लें मैं खोटा सिक्का चलाऊँ किसी के बाप का क्या ये और बात कि दौलत है मेरे पास मगर मैं भीक माँग के खाऊँ किसी के बाप का क्या गले के साज़ पे ग़ज़लें थिरक रही हों जब मैं फ़िल्मी गीत सुनाऊँ किसी के बाप का क्या है बिंत-ए-हव्वा मिरे ही बदन का इक हिस्सा अगर मैं उस को पटाऊँ किसी के बाप का क्या मैं अक्खा इंडिया फिरता हूँ आज भी 'वाहिद' मैं शेर लिख्खूँ लिखाऊँ किसी के बाप का क्या