लात उठा हाथ उठा जूता उठा माई डीयर अपने सीने से मगर मुझ को लगा माई डीयर एक कप चाय बना ज़हर मिला माई डीयर सब्र का घूँट न इस तरह पिला माई डीयर इस नए दौर में फ़र्सूदा रिवायत पे न जा शादी से पहले हनिमून मना माई डीयर जब भी चाहूँ तिरे फ़ादर की घुमा दूँ चाबी अपनी मम्मी को मगर तू भी पटा माई डीयर बात मनवानी है अर्बाब-ए-हुकूमत से अगर नित-नए ढोंग रचा धूम मचा माई डीयर मिल ही जाएगी ग़ज़ल तुझ को कोई एक नहीं अपने उस्ताद को पर चाय पिला माई डीयर अपनी दामादी का बख़्शेंगे शरफ़ अब्बा तिरे गर नहीं तुझ को यक़ीं शर्त लगा माई डीयर इश्क़ का आज उठा देख जनाज़ा 'वाहिद' झूटे टिसवे ही सही कुछ तो बहा माई डीयर