कोशिश-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ ने रुलाया है बहुत भूलना चाहा जब उस को याद आया है बहुत है अमल के बा'द ही दस्त-ए-दुआ' का मरहला हम ने ऐ वाइ'ज़ ख़ुदा को आज़माया है बहुत इक तबस्सुम के लिए सौ बार आँखें नम हुईं ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी तू ने रुलाया है बहुत दोस्तों ने जब हमें लूटा वफ़ा के नाम पर दुश्मनों की दुश्मनी पर प्यार आया है बहुत सर उठा कर चिलचिलाती धूप में कीजे सफ़र सर झुका लें तो घने पेड़ों का साया है बहुत ढूँडने जाएँ सुकून-ए-दिल कहाँ 'फ़रहत' कि अब वहशतों का हर गली-कूचे में साया है बहुत