ख़ाली नहीं है कोई यहाँ पर अज़ाब से दुनिया से मिल के देख ले अपने हिसाब से उस दिन अँधेरी गलियों में होगा तुलू-ए-दिन जिस रोज़ धूप छीनोगे तुम आफ़्ताब से पी लूँ ज़रा सी आग तख़य्युल उंडेल कर कुछ धूप छानना है ग़ज़ल के नक़ाब से ख़ुश्बू ने तेरी रंग-ए-कसाफ़त उड़ा दिया राहत मिली हवा को ज़रा इस अज़ाब से दिल तोड़ने का खेल नहीं तुम पे ही तमाम हम भी चुकाएँगे ये उधारी हिसाब से इंसाँ से दौर-ए-नौ ने मुरव्वत भी छीन ली बारिश ने सर-वरक़ भी उतारा किताब से दिल का शजर हरा था तो पतझड़ का ग़म न था उजड़ा है दिल तो कौन बचाए अज़ाब से