नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें मगर है जी में कि ख़ून-ए-जिगर बहा देखें नुक़ूश-ए-पा जो हुए जा रहे हैं गर्द उन्हें थकावटों से शराबोर लोग क्या देखें ये क्या सफ़र है कि सीधे-सपाट रस्ते हैं कभी तो हम कोई पुर-पेच रास्ता देखें फ़सील-ए-शब से उधर दे रहा हो कोई सदा हिसार-ए-ख़्वाब में लेकिन मुझे घिरा देखें फ़ज़ा में तैर रहे हों हरे-भरे चेहरे ख़ुद अपने चेहरे को लेकिन बुझा हुआ देखें सफ़र में शल हुए जाते हूँ धूप के पाँव उफ़ुक़ की आँख से बहती हुई हिना देखें तुलू-ए-महर से पहले बस एक पल के लिए किसी दिए की तरह हम भी झिलमिला देखें ये दिन भी 'ख़ालिद'-ए-शीराज़ देखने थे हमें नज़र उठाएँ तो पतझड़ का सिलसिला देखें