कितने दिन बा'द फिर आज उन से मुलाक़ात हुई रुक गया वक़्त दरख़्शंदा मिरी रात हुई फिर निगाहों ने निगाहों से सुना क़िस्सा-ए-शौक़ फिर इशारों ही इशारों में हर इक बात हुई चलते चलते उन्हें देखा था सर-ए-राह कहीं आरज़ू उन की उसी दिन से मिरे सात हुई कौन कहता है मैं सहरा में हूँ मैं तिश्ना हूँ ख़ून-ए-दिल रोज़ बहा रोज़ ही बरसात हुई दर-ए-मय-ख़ाना पे आसूदा-ए-राहत हूँ 'ख़लिश' ख़त्म अब मेरे लिए गर्दिश-ए-हालात हुई