सुबुक हूँ अपनी निगाहों में अर्ज़-ए-हाल के बा'द कि आबरू नहीं रहती कभी सवाल के बा'द न पूछो दिल को हुई हैं अज़िय्यतें क्या क्या कभी सवाल से पहले कभी सवाल के बा'द ज़मीर की वो मुसलसल मलामतें तौबा मिला है दिल को सकूँ अश्क-ए-इंफ़िआल के बा'द क़रार दिल को नहीं था क़रार दिल को नहीं तिरे विसाल से पहले तिरे विसाल के बा'द तिरे इ'ताब सहे सब्र से तो लुत्फ़ हुआ तिरा जमाल भी देखा तिरे जलाल के बा'द ज़न-ओ-गुमाँ से गुज़र कर तिरा ख़याल आया कोई ख़याल न आया तिरे ख़याल के बा'द मैं दिल तो हार चुका जान-ओ-माल हाज़िर हैं 'ख़लिश' के पास है क्या और जान-ओ-माल के बा'द