ख़ल्वत में ख़यालों की ये अंजुमन-आराई आबाद है अब कितना वीराना-ए-तन्हाई ऐसे भी मराहिल कुछ आए रह-ए-हस्ती में महसूस हुआ मंज़िल ख़ुद पास चली आई तू शम-ए-मसर्रत है ग़म-ख़ाना-ए-इम्काँ में दम से तिरे क़ाएम है हर बज़्म की रा'नाई है याद तिरी क्या क्या माइल-ब-करम मुझ पर गुज़रे हुए लम्हों को जो साथ लिए आई पिघले हुए सोने से उभरीं कई तस्वीरें दरिया के किनारों पर जब धूप उतर आई इस गुलशन-ए-हस्ती का हर रंग निराला है जब रोने लगी शबनम फूलों को हँसी आई