सफ़र पे निकले तो तन्हाइयाँ भी साथ चलीं तुम्हारी याद की परछाइयाँ भी साथ चलीं क़दम क़दम पे बढ़ा फ़ासलों का सन्नाटा क़दम क़दम पे सभी दूरियाँ भी साथ चलीं गुलाब-चेहरे बहुत पीछे छोड़ आए मगर तुम्हारे गाँव की रंगीनियाँ भी साथ चलीं वो शेर शेर फ़ज़ा वो ग़ज़ल ग़ज़ल शामें हसीन लम्हों की सरमस्तियाँ भी साथ चलीं रफ़ाक़तों से महकते तिलिस्मी शाम-ओ-सहर मोहब्बतों की ये पुरवाइयाँ भी साथ चलीं वो ख़ुशबू ख़्वाब धुआँ यादों के हसीं महताब तुम्हारी बज़्म की रानाइयाँ भी साथ चलीं छलकता जाए है 'हुस्ना' ख़ुमार आँखों से नज़र नज़र की ये बे-ख़्वाबियाँ भी साथ चलीं