ख़मोश हो गया आख़िर पुकारने वाला मिला न बोझ कोई भी उतारने वाला हज़ार चेहरे पे पाकीज़गी सही उस के मगर है ख़्वाहिशें दिल में उभारने वाला हज़ार रंग न बदले ज़मीन भी क्यूँकर है आसमान कई रूप धारने वाला रहा है कारगह-ए-फ़न में कामयाब बहुत हर एक बाज़ी ज़माने में हारने वाला नहीं है कोई 'जहाँगीर' इक हमारे सिवा ग़मों से ज़िंदगी अपनी निखारने वाला