ख़मोश नज़रों से हुस्न-ए-बुताँ की बात करें न लब पे आई जो उस दास्ताँ की बात करें रह-ए-जुनूँ में भटकते कहाँ कहाँ पहुँचे कहाँ कहाँ की सुनाएँ कहाँ की बात करें जिगर के दाग़ दिखाने से फ़ाएदा क्या है अबस है महज़ के ज़ोर-ए-ज़माँ की बात करें न भूल जाए ज़माना वफ़ा की क़द्रों को मिटे जो इश्क़ में उन के निशाँ की बात करें जबीन-ए-शौक़ का सज्दा यहाँ वहाँ क्यों हो जहाँ हो अज़्मत-ए-सर हम वहाँ की बात करें क़दम क़दम पे गुज़रते हैं इम्तिहाँ कितने चलो कि आज नए इम्तिहाँ की बात करें ये याद-ए-लुत्फ़-ए-बहाराँ भी कम नहीं है 'हबीब' भरी ख़िज़ाँ में भी क्या हम ख़िज़ाँ की बात करें