ख़मोशी उन का तर्ज़-ए-गुफ़्तुगू है यही अपना तकल्लुम हू-ब-हू है ज़बाँ-बंदी गुलों की क्या करोगे कि ख़ुशबू उन की शरह-ए-आरज़ू है जिसे देखा नहीं अब तक किसी ने वही चेहरा हमारे चार सू है पस-ए-आईना है ये अक्स किस का न जाने कौन मेरे रू-ब-रू है किया आँखों ने जो आँखों से शिकवा उसी का तज़्किरा अब कू-ब-कू है गिरे हैं आँख से जो चंद क़तरे उन्ही से दिल हमारा बा-वज़ू है ख़ुदी क्या है यक़ीं बस ये कि मैं हूँ समुंदर दिल में रक्खे आबजू है हर इक ने आसमाँ अपना सजाया हर इक इस आसमाँ की आबरू है जिसे एहसास अपने हुस्न का हो वही सूरज है वो ही माह-रू है किसी की याद ने महका दिया दिल हर इक धड़कन हमारी मुश्कबू है ये सारी उम्र सायों का तआ'क़ुब तुझे किस की 'हिदायत' जुस्तुजू है