मेरी बयाज़-ए-शेर पे वो नाम लिख गया इक ख़्वाब और एक हसीं शाम लिख गया दिल उस को ढूँढता है उसी की तलाश है चुपके से इक दुआ जो मिरे नाम लिख गया फिर उस से कब हो मेरी मुलाक़ात देखिए आग़ाज़ ही में जो मिरा अंजाम लिख गया जलती ज़मीं पे मैं ही खड़ा था कोई न था झोंका हवा का आया तो सौ नाम लिख गया ख़ुशबू था वो कि एक नई रुत नया समाँ चुपके से मेरे नाम जो ये शाम लिख गया वो मुझ से छीन कर मिरी बीनाइयाँ तमाम पत्थर का कैसा शहर मिरे नाम लिख गया ख़ुद अपनी आग ही में जला हूँ मगर 'रईस' सब के लिए महकती हुई शाम लिख गया