ख़ामुशी इल्तिफ़ात है शायद एक मोहमल सी बात है शायद दर्द-ए-दिल ही बरात है शायद हुस्न की ये ज़कात है शायद ज़िंदगी दो अदम की बर्ज़ख़ है इस लिए बे-सबात है शायद ज़िंदगी मौत से इबारत है मौत शरह-ए-हयात है शायद कितने वीराने हो गए आबाद आप का इल्तिफ़ात है शायद कुछ नहीं सोचता जवानी में ये भी तारीक रात है शायद कहते कहते जो हो गए ख़ामोश राज़ की कोई बात है शायद इस यक़ीं पर कलीम हैं बेहोश जल्वा-ए-हुस्न-ए-ज़ात है शायद दिल की तस्कीन रूह की राहत आह वज्ह-ए-हयात है शायद आँख के तिल के एक ज़र्रे में सिमटी कुल काएनात है शायद तिश्ना-कामी-ए-कर्बला है इश्क़ हुस्न आब-ए-फ़ुरात है शायद 'शो'ला' इस दिल में टीस उठती है आप का इल्तिफ़ात है शायद