ख़ून पलकों पे सर-ए-शाम जमेगा कैसे दर्द का शहर जो उजड़ा तो बसेगा कैसे रोज़-ओ-शब यादों के आसेब सताएँगे कोई शहर में तुझ से ख़फ़ा हो के रहेगा कैसे दिल जला लेते थे हम लोग अँधेरों में मगर दिल भी उन तेज़ हवाओं में जलेगा कैसे किस मुसीबत से यहाँ तक तिरे साथ आए थे रास्ता तुझ से अलग हो के कटेगा कैसे आख़िर उस को भी है कुछ 'जाफ़री' दुनिया का ख़याल देर तक रात गए साथ रहेगा कैसे