ख़ाना-ए-दिल में जा-ब-जा शब-भर मैं तुझे ढूँढता रहा शब-भर रात मुझ से लिपट के रोती रही सो मुझे जागना पड़ा शब-भर तेरे आने से हो तुलू-ए-सहर दिल ने माँगी यही दुआ शब-भर जाने वो किस की क़ब्र है जिस पर जलता रहता है इक दिया शब-भर लौटना था मुझे भी घर को मगर हाथ आया न रास्ता शब-भर अपनी पलकों पे ढोए अश्क 'अमीन' हम ने हारा न हौसला शब-भर