ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है क़स्द-ए-बैत-उल-हरम से ख़ाइफ़ है आइना हुस्न के सहीफ़े का लौह-पर्वाज़ है सहाएफ़ है गुल-रुख़ों में लतीफ़ा-गो हैं हज़ार पर वो गुलदस्ता-ए-ज़राइफ़ है ज़िक्र तेरा ब-रब्ब-ए-का'बा सनम हम को औराद है वज़ाइफ़ है क्या कहूँ मैं ज़राफ़तें उस की बे-सुख़न ,मा'दिन-ए-ज़राइफ़ है नश्शा-ए-होश से ये कैफ़िय्यत आलम-ए-कैफ़ पुर-कवाइफ़ है ऐ 'मुहिब' कीजिए दिल उस की नज़र यही तोहफ़ा यही तहाइफ़ है