ख़ाना-ए-दिल की तरह सारी फ़ज़ा है कि नहीं किस को मालूम कि बाहर भी हवा है कि नहीं जश्न बरपा तो हुआ था दम-ए-रुख़्सत लेकिन वही हंगामा मिरे बा'द बपा है कि नहीं पूछता है ये हर इक ख़ार-ए-सर-ए-दश्त-ए-जुनूँ आने वाला भी कोई आबला-पा है कि नहीं देख तो जा के मसीहा-ए-ग़म-ए-इश्क़ उसे हाथ अब तक यूँही सीने पे धरा है कि नहीं दिल के तारीक दर-ओ-बाम से अक्सर तिरा ग़म पूछता है कि कोई मेरे सिवा है कि नहीं मैं कहीं हूँ कि नहीं हूँ वो कभी था कि न था तू ही कह दे ये सुख़न बे-सर-ओ-पा है कि नहीं फ़ैसला लौट के जाने का है कितना मुश्किल किस से पूछूँ वो मुझे भूल चुका है कि नहीं मैं तो वारफ़्तगी-ए-शौक़ में जाता हूँ उधर नहीं मालूम वो आग़ोश भी वा है कि नहीं जाने क्या रंग चमन का है दम-ए-सुब्ह-ए-फ़िराक़ गुल खिले हैं कि नहीं बाद-ए-सबा है कि नहीं ऐ शब-ए-हिज्र ज़रा देर को बहले तो ये दिल देख 'इरफ़ान' कहीं नग़्मा-सरा है कि नहीं