शहर उजड़े हुए ख़्वाबों के बसाए क्या क्या नींद में हम ने दर-ओ-बाम सजाए क्या क्या हर क़दम पर किसी मंज़िल का गुज़रता था गुमाँ राह चलते हुए मंज़र नज़र आए क्या क्या हम कि फिर तेरी हक़ीक़त पे नज़र कर न सके ज़िंदगी तू ने हमें ख़्वाब दिखाए क्या क्या इक सितारा कि चमकता है बहुत दूर कहीं ज़ुल्मत-ए-शब में हमें पास बुलाए क्या क्या मौसम-ए-गुल में तिरा हम से जुदा हो जाना याद आए तो हमें ख़ून रुलाए क्या क्या खो से जाते हैं कहीं उस का ख़याल आते ही हम उसे भूल के भी भूल न पाए क्या क्या मुंदमिल हो गए सब ज़ख़्म पुराने तो मगर दिल की इक ताज़ा कसक हम को सताए क्या क्या क्या मसाफ़त है कि हैरान किए देती है हर गुज़रता हुआ पल सामने लाए क्या क्या आँसुओं ने तिरी तस्वीर भी धुँदली कर दी नक़्श पानी पे मगर हम ने बनाए क्या क्या लिखने बैठें जो कभी उम्र-ए-गुज़िश्ता का हिसाब एक इक लम्हा हमें याद दिलाए क्या क्या क्या कहें वो भी हमें रास न आई 'मख़मूर' इक ख़ुशी जिस के लिए रंज उठाए क्या क्या