ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ सिलसिला-जुम्बान-ए-शोर-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर हूँ ख़ाकसारी के अभी तो दरपय तदबीर हूँ कुश्ता हो कर ख़ाक जब हों तब कभी इक्सीर हूँ ज़ोफ़ ने गो कर दिया है जूँ कमाँ गोशा-नशीं अब भी चलने को जो पूछो तो सरासर तीर हूँ रिश्ता-ए-उल्फ़त ने बाँधे हैं पर-ए-पर्वाज़ आह दाम-ए-हैरत में ब-रंग-ए-बुलबुल-ए-तस्वीर हूँ तुझ से ये उक़्दा खुलेगा ऐ नसीम-ए-सुब्ह-दम ग़ुंचे की मानिंद इस गुलशन में क्यूँ दिल-गीर हूँ मुंतज़िर चश्म-ए-रिकाब ऐ सैद-ए-अफ़्गन है हनूज़ बोसा-ए-फ़ितराक की ख़्वाहिश है वो नख़चीर हूँ फ़क़्र की दौलत के आगे सल्तनत क्या माल है बिस्तरे पर अपने ऐ रूबा-मिज़ाजो शेर हूँ सच है अपने दम से क़ाएम है ये बुनियाद-ए-जहाँ रौनक़-अफ़ज़ा-ए-चमन आरईश-ए-तामीर हूँ जैसी चाहे वैसी ले मुझ से क़सम क़ातिल न डर हश्र को भी गर कभी तेरा मैं दामन-गीर हूँ अहल-ए-जौहर ही मिरे मज़मूँ को समझे है 'नसीर' मैं भी इक़्लीम-ए-सुख़न में साहिब-ए-शमशीर हूँ