उन से तन्हाई में बात होती रही ग़ाएबाना मुलाक़ात होती रही हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे ख़्वाब में ये करामात होती रही कासा-ए-चश्म लबरेज़ होती रही उस दरीचे से ख़ैरात होती रही दिल भी ज़ोर-आज़माई से हारा नहीं गरचे हर मर्तबा मात होती रही सर बचाए रहा सब्र का साएबाँ आसमाँ से तो बरसात होती रही गो मोहब्बत से हम जी चुराते रहे ज़िंदगी भर ये बद-ज़ात होती रही शहर भर में फिराया गया क़ैस को कूचे कूचे मुदारात होती रही जागते और सोते रहे हम 'शुऊर' दिन निकलता रहा रात होती रही