खंडर जो हो गया ऐसा मकान किस का था हवा जो सह न सका साएबान किस का था ज़मीन किस की थी और आसमान किस का था ख़याल किस का था दिल में गुमान किस का था थके हुए थे मुसाफ़िर किनारे लग जाते वो कश्ती डूब गई बादबान किस का था ग़ुरूर था जिन्हें अपनी ज़मीन-दारी का ज़मीन-दोज़ हुआ ख़ानदान किस का था वो एक लम्हा भी मेरे क़रीब आ न सका मैं जिस को छू न सकी आसमान किस का था ख़ुदा समझ के झुकाया था सर तिरे आगे जबीं पे मेरी वो धुँदला निशान किस का था जो छीन ले गया मुझ से मिरी मता-ए-हयात वो हाथ तेरे मिरे दरमियान किस का था शिकारी हो के हुआ ख़ुद शिकार हैरत है जो ऊँचे पेड़ पे था वो मचान किस का था वो जिस की आज भी 'रुख़्सार' गूँज बाक़ी है मिसाली शहर में वो ख़ानदान किस का था